पीलीभीत. भाजपा सांसद वरुण गांधी शुक्रवार को अपने संसदीय क्षेत्र के दौरे पर पहुंचे। वह यहां एक दर्जन से ज्यादा गावों में जन संवाद कार्यक्रमों में शामिल हुए। उन्होंने यहां पर असली राष्ट्रवादी कौन, कौन नहीं हो सकता राष्ट्रवादी, ईमानदारी की परिभाषा जैसे ऐसे तमाम मसलों पर बात की जिन्हें भाजपा अपनी पहचान से जोड़ती है लेकिन वरुण गांधी ने जो कुछ कहा और जैसे वह भाजपा के ही मौजूदा नेताओं पर सीधे हमले के तौर पर देखा जा रहा है।
वरुण गांधी ने कहा कि जो दमन करे और दबाव डाले और लोगों को पीड़ित करे। जो अपनी ताकत का दुरुपयोग कर अत्याचार करे, वह राष्ट्रवादी नहीं हो सकता। चाहे वह कोई भी नारा लगाए। उन्होंने कहा कि भारत माता की जय तभी होगी जब सबके सपनों की बराबर कीमत होगी। जब सबको बराबर के अधिकार मिलेंगे। भाजपा सांसद ने बढ़ती बेरोजगारी और अग्निवीर योजना को लेकर भी निशाना साधा।
सांसद वरुण गांधी ने कहा कि ईमानदार नेता कभी अपना जमीर नहीं बेचते। किसी के ऊपर कभी अत्याचार नहीं करते। उनके लिए राजनीति सेवा का माध्यम होती है। वो अपनी ताकत का इस्तेमाल दूसरों को उठाने के लिए करते हैं। उन्होंने कहा कि इतने साल हमको यहां हो गए, हमने कभी किसी पर अत्याचार नहीं किया, किसी में झगड़ा नहीं करवाया, जबकि राजनीति के ऐसे लोग भी हैं जो अपने स्वार्थ के लिए किसी भी स्तर तक गिर जाते हैं। उन्होंने कहा कि मेरी राजनीति आंदोलनकारी है। हम चुनाव जीतने और पद की चाह में नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन के लिए राजनीति में आए हैं। इस देश को बनाने के लिए राजनीति में आए हैं।
भाजपा सांसद ने कहा कि देश में बेरोजगारी बड़ी समस्या है। एक करोड़ सरकारी पद खाली पड़े हैं, लेकिन बेरोजगार युवा संकट से जूझ रहे हैं। अग्निवीर योजना पर सवाल उठाते हुए वरुण ने कहा कि राष्ट्र की रक्षा के लिए अग्निवीरों से कुछ सेवा लेने के बाद उनके भविष्य के बारे में नहीं सोचा गया। सेना में नौकरी करने के बाद कोई छोटा-मोटा काम करे तो वह उसके लिए अपमानजनक है।
वरुण गांधी ने कहा कि उनका और जनता का रिश्ता बहुत गहरा और सगा है। उन्होंने कहा कि वरुण गांधी और अन्य नेताओं में काफी फर्क है। उनके मुताबिक अन्य नेता नोचने व खाने के लिए हैं जबकि वरुण गांधी अपना खून जनता के लिए बहा देगा यह अंतर बाकी नेताओं व वरुण गांधी में है।
वरुण गांधी ने सीधे तौर पर किसी ना नाम नहीं लिया लेकिन उनकी कही और उनके निशाने पर आई सारी बातें ऐसी हैं जो भाजपा से संबंधित हैं, भाजपा का आदर्श वाक्य हैं या फिर भाजपा की सरकारों की तरफ से शुरू की गई योजनाएं हैं। दूसरे पिछले करीब 10 सालों से केंद्र में और करीब 6 साल से यूपी में भाजपा की सरकार है। इसीलिए किसी मुद्दे पर बात करते हुए वरुण दूसरी सरकारों को निशाना बना भी नहीं सकते। अपनी ही पार्टी और सरकार को निशाने पर लेने से साफ है कि वरुण गांधी भाजपा के मौजूदा नेतृत्व से तालमेल नहीं बिठा पा रहे हैं और अब वह खुल कर बगावत के रास्ते पर हैं।
भाजपा सांसद वरुण गांधी का भाजपा में एक वक्त कद ऐसा भी था कि उन्हें यूपी बीजेपी का फायर ब्रांड नेता कहा जाता था। उन्हें 2017 के यूपी विधानसभा चुनावों से पहले मुख्यमंत्री पद का दावेदार या चेहरा तक कहा जाता था। बाद के वर्षों में वरुण गांधी और उनकी मां मेनका गांधी का कद भाजपा में सीढ़ी-दर-सीढ़ी नीचे उतरता गया और अब तो उनकी स्थिति हाशिये पर है। वरुण को भाजपा की तरफ से एक बार फिर लोकसभा चुनाव में टिकट दिया जाएगा या नहीं यह भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता।
वरुण जिस तरह की बातें कर रहे हैं उससे तो भाजपा में उनका सफर लंबा नहीं चलता नहीं दिख रहा। वरुण के अगले सियासी ठिकाने को लेकर भी काफी अटकलें लगाई जाती रही हैं। कभी उनके कांग्रेस में जाने तो कभी सपा में जाने की बातें भी होती हैं। वरुण ने अपनी दादी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि दी और उनके कार्यों की तारीफ करके अपनी तरफ से संकेत भी दिया लेकिन कांग्रेस उन्हें स्वीकार करेगी या नहीं इसे लेकर राहुल गांधी साफ कर चुके हैं कि वरुण की विचारधारा कांग्रेस के साथ मेल नहीं खाती लेकिन वरुण के अपनी चचेरी बहन प्रियंका गांधी से रिश्ते काफी अच्छे बताए जाते हैं। सियासी गलियारों में कहा जाता है कि बहन प्रियंका चाहेंगी तो उनकी बात राहुल से ज्यादा वजनदार साबित हो सकती है और वरुण को कांग्रेस में एंट्री मिल सकती है।
बात सपा की करें तो सपा में भी वरुण के लिए विचारधारा वाली समस्या ही सामने आएगी। अखिलेश यादव से करीबी दिखाने के बावजूद समस्या यह है कि वरुण की पहचान फायरब्रांड हिंदुत्ववादी नेता की रही है जबकि मुस्लिम समुदाय यूपी में समाजवादी पार्टी का कोर वोटर माना जाता है। ऐसे में वरुण के लिए अखिलेश यादव मुस्लिम वोटरों की नाराजगी मोल लेना नहीं चाहेंगे।
यूपी में आगामी लोकसभा चुनाव के लिए फिलहाल कोई तीसरा मोर्चा या विकल्प की संभावना नहीं दिख रही है। अभी यहां मुख्य रूप से दो ही मोर्चे के बीच लड़ाई दिख रही है जिनमें से एक की अगुवाई भाजपा और एक की अगुवाई समाजवादी पार्टी कर रही है।
वरुण गांधी के लिए यह भी कहा जा रहा है कि वह उग्र हिंदुत्व से सॉफ्ट हिंदुत्व की तरफ जा सकते हैं और यूपी में एक तीसरे मोर्चे की संभावना बना सकते हैं। वह नई पार्टी या मोर्चे में अपने साथ ऐसे लोगों को जोड़ सकते हैं जो भाजपा या सपा दोनों ही खेमों से नाराज हैं। चुनावी सफलता मिलने पर ऐसा तीसरा मोर्चा जरूरत होने पर किसी भी पक्ष के साथ अच्छी बार्गेनिंग की स्थिति में भी रह सकता है।
वरुण गांधी के तेवरों से साफ है कि वह जल्दी ही कोई ऐलान कर देंगे। देखना होगा कि वह कौन सा विकल्प चुनते हैं। फिलहाल की स्थितियों में तीसरे विकल्प की संभावना ही ज्यादा दिखती है।