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बिहार चुनाव 2025: मुस्लिम वोट बैंक पर सबसे बड़ा ‘वार’, क्या ओवैसी बिगाड़ेंगे RJD का ‘MY’ समीकरण?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की घोषणा हो चुकी है और इस बार चुनावी रणनीति में सामाजिक समीकरणों को साधने की होड़ है। इन सबमें सबसे महत्वपूर्ण है मुस्लिम वोट बैंक, जिसे बिहार की राजनीति में ‘किंगमेकर’ माना जाता है।

बिहार चुनाव 2025: ‘किंगमेकर’ मुस्लिम वोट पर सबसे बड़ा दाँव

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की घोषणा हो चुकी है और इस बार चुनावी रणनीति में सामाजिक समीकरणों को साधने की होड़ है। इन सबमें सबसे महत्वपूर्ण है मुस्लिम वोट बैंक, जिसे बिहार की राजनीति में ‘किंगमेकर’ माना जाता है। यह वर्ग राज्य की करीब 47 विधानसभा सीटों पर हार-जीत का सीधा फैसला करता है, और पारंपरिक रूप से यह महागठबंधन (RJD) का मज़बूत गढ़ रहा है।

RJD का पारंपरिक MY समीकरण खतरे में

दशकों से, लालू प्रसाद यादव की पार्टी RJD मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण के दम पर चुनावी मैदान में उतरती रही है। बिहार में मुस्लिम आबादी लगभग 16% और यादव आबादी 14% है, जो मिलकर RJD की सबसे बड़ी राजनीतिक शक्ति रहे हैं। राज्य की कुल 243 सीटों में से लगभग 47 सीटें ऐसी हैं जहाँ मुस्लिम आबादी 20% से 40% के बीच है। यही सीटें बिहार की सत्ता का रास्ता तय करती हैं।

लेकिन इस पारंपरिक MY समीकरण को इस बार हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM से बड़ी चुनौती मिल रही है। AIMIM की एंट्री ने महागठबंधन के लिए खतरे की घंटी बजा दी है, खासकर मुस्लिम बहुल सीमांचल के इलाके में।

सीमांचल का सियासी गेम: ओवैसी फैक्टर

सीमांचल के इलाके में किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार जैसे जिले आते हैं, जहाँ मुस्लिम आबादी 40% से 68% तक है। 2020 के विधानसभा चुनाव में, AIMIM ने इसी क्षेत्र की पाँच विधानसभा सीटें जीतकर सबको चौंका दिया था। यह पहली बार था जब मुस्लिम वोट MY समीकरण से अलग होकर किसी अन्य पार्टी की तरफ गया।

हालांकि बाद में AIMIM के पाँच में से चार विधायक RJD में शामिल हो गए, जिससे पार्टी की ताकत कम हुई। इसके बावजूद, ओवैसी फैक्टर को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। AIMIM के पास सीमांचल की आठ अहम रणभूमियाँ हैं, जिनमें अमौर, बायसी, बहादुरगंज, कोचाधामन और जोकिहाट उनकी “कोर स्ट्रेंथ” मानी जाती हैं।

ओवैसी की रणनीति साफ़ है: वह खुद को मुस्लिमों के एकमात्र प्रतिनिधि के तौर पर पेश करते हैं। विपक्ष उन्हें “वोटकटवा” कहता है, क्योंकि AIMIM के कारण होने वाले वोट बंटवारे का सीधा फायदा NDA को मिल सकता है।

निष्कर्ष: बिहार का भविष्य अब 47 सीटों पर

2020 के चुनाव में AIMIM को मिला 1.24% वोट शेयर यह दिखाता है कि तेलंगाना के बाहर भी उनकी सफलता की गुंजाइश है। अब सवाल यह है कि क्या ओवैसी इस बार अपनी पकड़ को और मज़बूत कर पाएंगे?

महागठबंधन के सामने अपनी पुरानी पकड़ को बचाए रखने की दोहरी चुनौती है। उन्हें अपना MY समीकरण मज़बूत करना है और साथ ही ओवैसी के बढ़ते प्रभाव से भी निपटना है। यदि मुस्लिम वोट बंटता है, तो इसका सीधा असर चुनावी नतीजों पर पड़ेगा, जिससे NDA के लिए जीत की राह आसान हो सकती है। बिहार का राजनीतिक भविष्य अब इसी 47 सीटों के गणित पर टिका है।