लोकसभा चुनावों में करीब 6 महीने का वक्त बचा है। विपक्ष ने भाजपा की अगुवाई वाले सत्तारूढ़ एनडीए का मुकाबला करने के लिए इंडिया नाम से गठबंधन बनाया था लेकिन लोकसभा चुनाव के फाइनल मुकाबले से पहले ही सेमीफाइनल कहे जा रहे पांच राज्यों के मौजूदा विधानसभा चुनावों में इंडिया गठबंधन की टीम बिखरती दिख रही है। ताजा बयान इंडिया गठबंधन का सबसे पहले सपना देखने वाले नीतीश कुमार का है जिन्होंने गठबंधन के सबसे बड़े घटक कांग्रेस को लेकर बहुत बड़ी बात कही है और कांग्रेस के प्रति उनकी नाराजगी इसमें खुल कर दिखती है।
पटना में सीपीआई की रैली में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इंडिया गठबंधन में चल रही गतिविधियों को लेकर नाराजगी जताई। नीतीश कुमार ने कहा कि आजकल इंडिया गठबंधन में कोई काम नहीं हो रहा है। कांग्रेस पार्टी इस पर ध्यान नहीं देकर पांच राज्यों के चुनावों में व्यस्त हो गई है। नीतीश कुमार ने कहा कि देश के इतिहास को बदलने वाले को हटाने के लिए इस गठबंधन को बनाया गया था। हमने सभी लोगों से कहा था कि एकजुट होइए और देश को बचाइए लेकिन आजकल कांग्रेस पार्टी पांच राज्यों के चुनाव में व्यस्त है।
नीतीश कुमार ने आगे कहा कि चुनाव खत्म होते ही वह फिर से सभी लोगों को साथ बुलाएंगे। उन्होंने कहा कि हम लोग तो सबको एक साथ लेकर चलने वाले हैं। उन्होंने कहा कि हम लोग सोशलिस्ट लोग हैं। सीपीआई से हमारा पुराना रिश्ता है। कम्युनिस्ट और सोशलिस्ट को एक होकर आगे चलना है।
नीतीश की बातों का मतलब यह निकल रहा है कि वह कांग्रेस से उन्हें अब ज्यादा उम्मीद नहीं दिख रही है। वह सबको बुलाने की बात कह रहे हैं यानी अपनी भूमिका को भी बढ़ाने की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने कम्युनिष्ट और सोशलिस्ट को एक होकर चलने की बात कही है तो उनकी बातों से एक संभावित गैर कांग्रेसी गठबंधन की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
दरअसल, इस सबके लिए कांग्रेस ही काफी हद तक जिम्मेदार है। फिलहाल जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं इंडिया गठबंधन से उनमें कांग्रेस ही सबसे प्रमुख पार्टी है। हिंदी भाषी राज्यों की बात करें तो राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ही सत्ता में है और एमपी में भी उसकी स्थिति अच्छी मानी जा रही है। इन चुनावों में इंडिया गठबंधन के सहयोगी कांग्रेस से सीटें चाह रहे थे लेकिन कांग्रेस उन्हें पांच गांव तो क्या सुई की नोक भर तक देने को तैयार नहीं दिखी। इसीलिए यूपी में अखिलेश यादव जैसे कांग्रेस के सहयोगी भी नाराज हो गए क्योंकि एमपी में कांग्रेस ने उन्हें जरा भी भाव नहीं दिया।
कांग्रेस ने एमपी चुनाव के लिए यूपी तक को दांव पर लगा दिया लेकिन यूपी में कांग्रेस एक भी चुनावी जीत चाहती है तो उसे समाजवादी पार्टी की बैसाखी की जरूरत पड़ेगी ही। जो हालात बने में उसमें सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भी कांग्रेस के साथ जैसे को तैसा वाला हाल करेंगे ही, इसमें कोई शक नहीं।
कांग्रेस के लिए सुविधाजनक स्थिति तब ही हो सकती है जबकि वह हिंदी क्षेत्र के तीनों राज्यों में सत्ता हासिल करने की स्थिति में आए, वरना इंडिया गठबंधन के दूसरे सहयोगी आगे उसे भाव नहीं देने वाले। अब सबकुछ इन राज्यों के चुनाव नतीजों से ही तय होगा। फिलहाल तो जो स्थिति बनी है उससे इंडिया गठबंधन का भविष्य अच्छा नहीं दिख रहा।