बुधवार देर रात राष्ट्रीय लोक दल के ट्विटर हैंडल से एक तस्वीर शेयर की गई जिसके बाद आरएलडी और भाजपा के बीच कुछ सियासी खिचड़ी पकने को लेकर कयासबाजियां तेज हो गई हैं। वैसे तो यह अटकलें तब से ही लगाई जा रही हैं जब आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी विपक्षी दलों की पटना वाली बैठक में नहीं गए थे। बाद में बेंगलुरू की बैठक में शामिल होकर जयंत चौधरी ने अटकलों को विराम दिया लेकिन फिर दिल्ली सर्विस बिल पर संसद में वोटिंग के वक्त उनकी गैरमौजूदगी और अब इन तस्वीरों ने एकबार फिर अटकलों को हवा दे दी।
वोटिंग के दौरान गैरमौजूदगी और फिर आरएलडी के विधायकों की मुख्यमंत्री से मुलाकात के बाद सियासी गलियारों में जयंत और भाजपा के बीच करीबी की चर्चाएं काफी जोरों पर हैं। मुख्यमंत्री से मुलाकात पर आधिकारिक तौर पर आरएलडी की तरफ से यह बताया गया कि ‘गन्ना भुगतान में विलंब किसानों के लिए बड़ी समस्या बन गई है। रालोद सदैव किसान भाईयों के हित की आवाज उठाता रहा है। इसी क्रम में रालोद विधानमंडल दल के नेता राजपाल बालियान जी के नेतृत्व में विधायक दल ने गन्ना भुगतान के मामले पर मुख्यमंत्री जी से बात कर शीघ्र भुगतान का आग्रह किया।‘
दिल्ली सर्विस बिल पर संसद में वोटिंग के वक्त जयंत चौधरी की गैरमौजूदगी उनकी पत्नी का ऑपरेशन होना बताया गया था। आरएलडी के प्रवक्ता अनिल दुबे ने भी यह साफ किया है कि जयंत चौधरी मजबूती से इंडिया गठबंधन में बने हुए हैं। वह इंडिया गठबंधन छोड़कर कहीं नहीं जा रहे। मुंबई में होने वाली अगली बैठक में भी वह शामिल होंगे। बाकी तमाम बातें सिर्फ कयासबाजी हैं।
यह सच है कि आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा गया लेकिन अक्सर यही देखा गया है कि राजनीतिक समीकरण ऐसे ही बनते-बिगड़ते हैं। राजनीति में टाइमिंग काफी महत्वपूर्ण होती है। आरएलडी के विधायकों का मुख्यमंत्री से एक साथ मिलना, आरएलडी प्रमुख का विपक्षी गठबंधन की बैठक में शामिल ना होना या संसद में वोटिंग के वक्त विपक्ष दलों के साथ मौजूद ना दिखना भी अपने आप में कुछ ना कुछ संकेत देता ही है।
भाजपा खेमे से हो रही बयानबाजियों से भी इन अटकलों को हवा मिल रही है। हाल ही में योगी सरकार के मंत्री जेपीएस राठौर ने कहा था कि अब जयंत चौधरी को सूट सिलाने की तैयारी करनी चाहिए। उनका इशारा केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए तैयार होने को लेकर था। वहीं यह भी कहा जा रहा है कि जयंत चौधरी मान गए तो भाजपा राज्य मंत्रिमंडल में भी उनकी पार्टी को जगह दे सकती है।
जयंत चौधरी के भाजपा खेमे में आने से भाजपा को बड़ा फायदा हो सकता है। दरअसल, आरएलडी के साथ जाटों के एक बड़े वर्ग का समर्थन है। चाह कर भी भाजपा उन्हें अपनी तरफ मोड़ नहीं पाई है। अगर जयंत उसका साथ दे देते हैं तो भाजपा पश्चिमी यूपी में क्लीन स्वीप को लेकर आश्वस्त हो सकती है।
दूसरी तरफ, समाजवादी पार्टी के साथ रह कर जयंत चौधरी को अभी तक कोई खास राजनीतिक कामयाबी नहीं मिल सकी है। पिछले लोकसभा चुनावों में आरएलडी के हाथ खाली ही रह गए थे। 2022 के विधानसभा चुनावों में भी आशातीत सफलता नहीं मिली। ऐसे में अगर जयंत आरएलडी के साथ जाने का फैसला करते हैं तो उन्हें सत्ता का स्वाद चखने का मौका मिल सकता है।
कहा यह तक जा रहा है कि जयंत चौधरी और भाजपा के बीच गतिरोध सीटों के बंटवारे को लेकर है जिसपर दोनों पक्ष धीरे-धीरे सहमति की ओर बढ़ रहे हैं। हालांकि, यह इतना आसान नहीं होगा। भाजपा के साथ जाने में उन्हें अपने पिता स्व.चौ.अजीत सिंह के साथ बंगला विवाद और अन्य कड़वी यादें भुलानी होंगी। इतना ही नहीं, उनकी पार्टी को समाजवादी पार्टी के समर्थकों का भी वोट मिलता रहा है, वह खोने पड़ेंगे। हालांकि, राजनीति में कुछ भी नामुमकिन नहीं है।