सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर जबसे एनडीए का हिस्सा बने हैं तबसे उनके और समाजवादी पार्टी के नेता शिवपाल सिंह यादव के बीच जुबानी जंग काफी बढ़ गई है। वैसे तो यह सिलसिला तभी से शुरू हो गया था जब ओपी राजभर ने सपा का साथ छोड़ा और शिवपाल औपचारिक रूप से सपा में शामिल हुए लेकिन सुभासपा प्रमुख के एनडीए में जाने के बाद से यह सियासी लड़ाई काफी तेज हो गई है।
अब ना तो शिवपाल सिंह यादव और ना ही ओमप्रकाश राजभर एक-दूसरे के खिलाफ बोलने का कोई मौका छोड़ रहे हैं। शिवपाल यादव मीडिया और सोशल मीडिया में ओमप्रकाश राजभर पर टिप्पणियां कर रहे हैं वहीं ओमप्रकाश राजभर और उनके दोनों बेटों ने भी शिवपाल के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है। दोनों ही पक्ष एक-दूसरे को वह वक्त याद दिला रहे हैं जब वे अबके विरोधी खेमे में थे। यानी ओपी राजभर सपा के साथ थे और शिवपाल सपा से अलग अपनी पार्टी में थे।
हाल ही में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) प्रमुख ओमप्रकाश राजभर ने सपा नेता शिवपाल यादव को दगा कारतूस बताते हुए कहा है कि वह दिन में खुली आंखों से सपना देखना छोड़ दें। पूरे देश में पीएम मोदी के पक्ष में प्रचंड लहर चल रही है। शिवपाल सिंह यादव ने कहा था कि सपा यूपी में कम से कम 50 सीटें जीतेगी तो राजभर ने प्रतिक्रिया दी कि लोकसभा चुनाव में सपा 50 सीट तो क्याि 5 सीट भी नहीं जीत पायेगी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस कहीं दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रही है। अति बैकवर्ड समाज के लोग लगातार एनडीए से जुड़ रहे हैं जिससे यूपी में सपा-बसपा का सूपड़ा साफ हो रहा है।
ओमप्रकाश राजभर के बेटे अरुण राजभर ने भी शिवपाल के खिलाफ सोशल मीडिया पर मोर्चा खोला हुआ है। उन्होंने शिवपाल पर निशाना साधते हिए लिखा ‘चाचा श्री शिवपाल यादव जी को मंच पर धक्का मारके भगायें गये थे इसीलिए सपा के विरोध में PSPL बनी थी डर दहशत नहीं था तो अपने चाभी पर क्यों नहीं लड़े? बहुत तीसमार ख़ा थे तो साईकिल से क्यों लड़े? अपनी हैसियत पता था इसी लिये नहीं लड़े, सुभासपा की बढ़ती लोकप्रियता से डरे हुए है,इसी लिए बढ़ती ताक़त को पसंद नहीं कर पा रहे है’।
उधर शिवपाल यादव ने ओम प्रकाश राजभर के एनडीए में फिर से शामिल होने के तुरंत बाद बयान दिया था कि ऐसे लोगों का कोई ठिकाना नहीं है। ये कब-कहां शामिल हो जाएं कुछ पता नहीं। सपा नेता शिवपाल सिंह यादव ने यहां तक दावा किया था कि राजभर जहां से चुनाव लड़ेंगे वहां से हारेंगे। शिवपाल ने एक ट्वीट में राजभर के लिए लिखा था कि ‘बाजा बजाते-बजाते खुद ही बैंड हो गए हैं’।
शिवपाल ने कहा था कि ‘हम उन्हें अच्छी तरह जानते हैं। वह हमेशा से बीजेपी के संपर्क में रहे हैं। वह कभी बीजेपी से अलग थे ही नहीं। हमेशा बोलते ही रहते हैं और फिर जब चुनाव आते हैं तो उनकी दुकान फिर से चलना शुरू हो जाती है’ इतना ही नहीं शिवपाल ने कह दिया था कि वह एक बार ओमप्रकाश राजभर के विधानसभा क्षेत्र गाजीपुर के जहूराबाद का दौरा करेंगे और राजभर अपनी सीट तक नहीं बचा पाएंगे।
शिवपाल ने यह बात राजभर के एनडीए में शामिल होने के तुरंत बाद ही कही थी और इसके बाद से ही उनके और राजभर के बीच सियासी जंग काफी बढ़ गई थी। दरअसल, जहूराबाद का दौरा वाली बात ओमप्रकाश राजभर को जरा भी पसंद नहीं आई। इसके पीछे बड़ी वजह है। राजभर जहूराबाद से पिछला चुनाव (2022) सपा के साथ गठबंधन में करीब 45 हजार वोटों से जीते थे। बीजेपी के कालीचरण राजभर दूसरे नंबर पर रहे। बीएसपी की शादाब फातिमा 53,144 वोट पाकर तीसरे नंबर पर रही थीं।
शादाब फातिमा को शिवपाल सिंह यादव की करीबी नेता माना जाता है। ओमप्रकाश राजभर से पहले यानी 2012 में वह जहूराबाद से ही सपा विधायक थीं। पिछला चुनाव ( 2022) वह सपा के टिकट पर ही लड़ना चाहती थीं लेकिन सपा-सुभासपा गठबंधन में सीट सुभासपा के खाते में चले जाने से वह बसपा की प्रत्याशी बनीं। 2022 के चुनाव को भाजपा और सपा गठबंधन के बीच का माना जा रहा था लेकिन शादाब फातिमा को मिले वोटों ने सभी सियासी दिग्गजों को हैरान किया।
ओमप्रकाश राजभर जब साल 2017 में पहली बार भाजपा गठबंधन में जहूराबाद से चुनाव जीते तो उन्होंने तब उन्होंने प्रचंड मोदी लहर में उस वक्त बसपा में रहे कालीचरण राजभर को करीब 18 हजार वोटों से हराया था। उस वक्त चाचा-भतीजे के झगड़े में चाचा की करीबी मानी जाने वाली शादाब फातिमा का सपा से टिकट कट गया था और उनकी जगह टिकट पाने वाले सपा के महेंद्र तीसरे नंबर पर रहे थे। वहीं जब ओपी राजभर सपा गठबंधन में 2022 का चुनाव जीते तो तब भाजपा में आ चुके कालीचरण राजभर से उनकी जीत का अंतर पिछली बार की तुलना में दोगुने से भी ज्यादा यानी करीब 45 हजार वोटों का था।
जहूराबाद में राजभर समाज के मतदाताओं की संख्या काफी ज्यादा है लेकिन यादव और मुस्लिम एक साथ जोड़ें तो यह राजभर की कुल संख्या से ज्यादा ठहरते हैं। जाहिर है अब बदले समीकरण में शादाब फातिमा जहूराबाद से समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी हो सकती हैं। उन्हें शिवपाल यादव का करीबी नेता माना जाता है। अगर वह सपा से चुनाव लड़ती हैं तो वह निश्चित रूप से ओमप्रकाश राजभर के लिए बड़ी चुनौती हो सकती हैं।
फिलहाल विधानसभा के नहीं, लोकसभा के चुनाव करीब हैं। ऐसे में देखना होगा कि ओमप्रकाश राजभर गाजीपुर के लोकसभा चुनाव में अपने विधानसभा क्षेत्र से कितने वोट दिला सकते हैं। ऐसे में लोकसभा चुनाव के नतीजे ही ओमप्रकाश राजभर की आगे की राजनीति के लिए काफी महत्वपूर्ण हो सकते हैं। इसीलिए ओमप्रकाश राजभर को अपने ही गढ़ का नाम लेकर शिवपाल की तरफ से ललकारा जाना जरा भी पसंद नहीं आया है।