मऊ. घोसी उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह चौहान की हार और सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह की जीत के बाद सबसे ज्यादा चर्चा अगर किसी की हो रही है तो वह हैं सुभासपा के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर। पिछले दो विधानसभा चुनावों में ओमप्रकाश राजभर हीरो की तरह से उभरे थे। 2017 के विधानसभा चुनावों में ओपी राजभर भाजपा के साथ थे तो भाजपा को अप्रत्याशित कामयाबी मिली और 2022 में सपा के साथ थे तो सपा को भी पूर्वांचल में अच्छी कामयाबी मिली। लेकिन घोसी के उपचुनाव नतीजे ने ओपी राजभर की साख को काफी नुकसान पहुंचाया है।
घोसी का चुनाव जीतने के बाद सपा के नवनिर्वाचित विधायक सुधाकर सिंह ने कहा कि उन्हें चुनाव में सभी का सहयोग मिला। सुभासपा प्रमुख ओपी राजभर को लेकर उनसे सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ‘ओमप्रकाश नेता हैं, उनका भी अंदर से हमारा ही सपोर्ट था’।
घोसी चुनाव नतीजे आने से पहले तक ओपी राजभर बड़े-बड़े दावे कर रहे थे। उन्होंने कहा था कि घोसी का चुनाव उनका अपना चुनाव है और उनकी साख का सवाल है। ओपी राजभर को राजभर समाज का बड़ा नेता माना जाता है लेकिन घोसी के राजभर समाज की बहुलता वाले कई बूथ ऐसे भी हैं जहां से ज्यादा वोट समाजवादी पार्टी को गए। इससे सवाल उठ रहा है कि क्या अब ओपी राजभर की अपने समाज पर पकड़ नहीं रही?
ओपी राजभर ने नतीजे आने के बाद कहा कि वह देखेंगे कि कहां कमियां रह गईं लेकिन सवाल तो उनके दावों पर भी उठ रहे हैं। चुनाव से पहले उन्होंने उन्होंने इतने बड़े-बड़े दावे आखिर किए कैसे? क्या वह जनता की नब्ज को समझ नहीं पाए। जनता के मन में क्या चल रहा क्या वह पढ़ नहीं पाए?
राजभर मतदाताओं के ओपी राजभर का साथ नहीं देने की एक बड़ी वजह यह भी बताई जा रही है कि बार-बार दलबदल से यह समाज खुश नहीं था। ओपी राजभर पिछले 4-5 भाजपा, सपा और फिर से भाजपा यानी तीन बार खेमा बदल चुके हैं। भाजपा और सपा की विचारधारा एकदम उलटी मानी जाती है। राजभर जहां जाते हैं वहां के नेताओं की खूब तारीफें और जिसे छोड़ कर आए उसकी खूब निंदा करते दिखे हैं। सोशल मीडिया पर उनके इस तरह के ढेरों बयान भरे पड़े हैं।
राजभर ने पहली बाद भाजपा का साथ छोड़ने के बाद सीएम योगी और पीएम मोदी को लेकर बहुत ही तीखे बयान दिए थे। अब वह इनकी तारीफें करते नहीं थकते। ठीक वैसे ही राजभर जब सपा के साथ थे तो सपा की तारीफ करते नहीं थकते थे, बल्कि उन्होंने तो अखिलेश यादव को ‘सीएम बनाकर रहूंगा’-ऐसा दावा भी किया था लेकिन सपा से अलग होते ही वह अखिलेश यादव को सैफई वापस भेज देने की बातें करने लगे।
ओपी राजभर के ऐसे बयान ही उनकी सबसे बड़ी मुसीबत बन गए। ओपी राजभर के बड़बोले बयानों को उनकी साख में बट्टा लगाने में सबसे बड़ा योगदान माना जा रहा है।