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मुस्लिम वोटर साधने के लिए भाजपा ने इस मुस्लिम प्रोफेसर पर लगाया दांव, दी बड़ी जिम्मेदारी

भाजपा वर्ष 2024 के आमचुनाव में यूपी पर खास फोकस कर रही है और उसकी नजर यहां की सभी 80 सीटें जीतने पर है। इस कड़ी में वह मुस्लिम वोटरों को भी अपने पाले में करने की कोशिश में जुटी है जिन्हें मुख्य रूप से समाजवादी पार्टी को समर्थक माना जाता है। भाजपा मुस्लिम वोटरों में से पसमांदा या पिछड़े मुसलमानों पर फोकस कर रही है और इसके लिए उसने मुस्लिम चेहरे तारिक मंसूर पर दांव लगाया है।


भाजपा ने अपनी राष्ट्रीय टीम में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति प्रो. तारिक मंसूर को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया है। वे पसमांदा मुसलमान है। उन्हें जिम्मेदारी देकर भाजपा ने उन्हें पसमांदा मुसलमानों की सियासत में अपना नया चेहरा बनाया है। भाजपा इसी समाज में पैठ बनाने के लिए यात्रा भी निकाल रही है।


प्रो. तारिक मंसूर के लिए राजनीति नई चीज नहीं है, बल्कि उन्हें यह विरासत में मिली है। उनके दादा अब्दुल खालिक मूल रूप से मेरठ के निवासी थे। एएमयू बनने से पहले मोहम्मडन ओरिएंटल (एमएओ) कालेज में पढ़ाई के लिए अलीगढ़ आए थे। कानून की डिग्री लेने के बाद विधि विभाग में ही शिक्षक बन गए। रिटायरमेंट के बाद अब्दुल खालिक की रुचि राजनीति में हुई तो 1931 में उन्होंने अलीगढ़ नगर पालिका के अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ा और जीता। बेटा हफीज उर रहमान भी एएमयू के कानून विभाग में डीन रहे।


अब्दुल खालिक ने बेटे हफीजउर्रहमान के नाम पर ही मैरिस रोड पर हफीज मंजिल नाम से कोठी बनवाई। प्रो. तारिक मंसूर अपने चार भाइयों में सबसे छोटे हैं। उनके बड़े भाई प्रो. रशीदउर्रहमान जामिया हमदर्द विश्वविद्यालय के कुलपति और सऊदी अरब में प्रोफेसर भी रहे। सऊदी अरब में ही एक सड़क हादसे में उनका निधन हो गया था।

एमबीबीएस, एमएस के बाद डॉक्टर के तौर पर सेवाएं दीं


प्रो. तारिक मंसूर ने 1978 में एएमयू के जेएन मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस किया और 1982 में एमएस पूरा किया। 1983 से दो साल वह मेडिकल कॉलेज में सीएमओ रहे, फिर सऊदी अरब चले गए। एक साल बाद भारत लौटे और 1986 से 1993 तक जेएन मेडिकल कॉलेज में असिस्टेंट प्रफेसर रहे। वर्ष 2001 तक एसोसिएटेड प्रफेसर और बाद में लगातार 11 साल तक प्रफेसर रहे। 2013 में वह मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल और सीएमएस रहे। इसके बाद 2017 में वह एएमयू के वीसी बने।

एएएमयू के 24 वें कुलपति के रूप में कार्यभार संभाला


तारिक मंसूर ने 17 मई 2017 को एएएमयू के 24 वें कुलपति के रूप में कार्यभार संभाला। 17 मई 2022 को उनका कार्यकाल समाप्त होना था लेकिन उन्हें एक वर्ष का सेवा विस्तार मिला। कुलपति का कार्यकाल 17 मई 2023 को पूरा होना था, लेकिन उससे पहले ही राज्यपाल ने उन्हें एमएलसी मनोनीत कर दिया। इसके चलते उन्होंने 2 अप्रैल 2023 को कुलपति पद से इस्तीफा दे दिया।

तारिक मंसूर के आरएसएस और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से रही करीबी

कुलपति रहने के दौरान तारिक मंसूर के आरएसएस और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से संबंध बनते गए। वे आरएसएस के बड़े आयोजनों में भी शामिल होते थे। एमएलसी बनाए जाने के पीछे आरएसएस के नेताओं के साथ संबंधों को भी माना जा रहा है। वर्ष 2022 में उनके बेटे के रिसेप्श न में आरएसएस के राष्ट्रीय सह सरकार्यवाह डा. कृष्ण गोपाल, वरिष्ठ प्रचारक इंद्रेश कुमार और सुनील आंबेकर सहित कई भाजपा नेता भी शामिल हुए थे।

तारिक मंसूर से उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोट बैंक को बड़ा संदेश देने की कोशिश


भारतीय जनता पार्टी ने प्रोफेसर तारिक मंसूर को बड़ा पद दिया है तो उनसे कई उम्मीदें भी हैं। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की विशेष प्रतिष्ठा रही है। तारिक मंसूर के सहारे भाजपा शिक्षित मुस्लिम समाज में अपनी पकड़ मजबूत कर सकेगी। दूसरा पार्टी के पास वर्तमान में बड़े मुस्लिम चेहरों की कमी है। प्रोफेसर तारिक मंसूर वो कमी भर सकते हैं। मुस्लिम मतदाताओं तक पहुंचने की रणनीति में वह अहम रोल निभा सकते हैं।


प्रोफेसर तारिक मंसूर के सहारे भाजपा उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोट बैंक को बड़ा संदेश देने की कोशिश में है। उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 29 सीटें मुस्लिम बाहुल्य हैं और बीजेपी के लिए ये सबसे बड़ा चैलेंज रहती हैं। इनमें ज्यादातर सहारनपुर, मेरठ, कैराना, बिजनौर, अमरोहा, मुरादाबाद, रामपुर, संभल, बुलंदशहर, अलीगढ़ पश्चिम उत्तर प्रदेश में आती हैं। सहारनपुर, बिजनौर, अमरोहा, संभल, मुरादाबाद, नगीना बीजेपी से पास अभी भी नहीं हैं।


भाजपा को आज भी मुस्लिम बाहुल्य सीट पर जीत का कांफिडेंस नहीं रहता है। ऐसे में वह चुनाव में वोटकटवा समीकरण पर ध्यान लगाती है। आजमगढ़ उपचुनाव इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जहां बीजेपी के निरहुआ की सपा के धर्मेंद्र यादव पर जीत में ज्यादा चर्चा बसपा के गुड्‌डू जमाली को मिले वोटों की हुई। माना गया कि मुस्लिम मतदाता वहां बंट गया, जिस कारण भाजपा जीत दर्ज कर सकी।


भाजपा का थिंक टैंक इस स्थिति को बदलना चाहता है। पसमांदा मुसलमान जो आर्थिक, सामाजिक तौर पर पिछड़ा है और उसके पास मजबूत राजनीति नेतृत्व भी नहीं है, उसे भाजपा सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने और पसमांदा सम्मेलन कर अपने पाले में करने की कोशिश में है। भाजपा को इसका लाभ मिल भी सकता है क्योंकि मुस्लिम समाज की नई पीढ़ी भी विकास और सत्ता की मुख्य धारा में शामिल होने के लिए बेकरार है।


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