कवयित्री मधुमिता शुक्ला मर्डर केस में पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी की रिहाई पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है। सर्वोच्च अदालत ने मधुमिता शुक्ला की बहन निधि शुक्ला की याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी करके 8 सप्ताह में जवाब मांगा है। उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से 24 अगस्त को अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी को रिहा करने का आदेश जारी किया गया था।
अमरमणि, मधुमणि की रिहाई के आदेश के खिलाफ मधुमिता की बहन निधि शुक्ला सुप्रीम कोर्ट पहुंची थीं। सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाकर्ता की वकील कामिनी जायसवाल ने दलील दी कि सरकार अमरमणि के 20 साल कैद में रहने की बात कह रही है लेकिन 14 साल से तो वे अस्पताल में हैं, जेल में तो नहीं रहे। इस पर अदालत ने याचिकाकर्ता से कहा कि सरकार का जवाब आने दें। अगर आपकी दलीलों से सहमत होंगे तो उन्हें वापस जेल भेजा जाएगा।
राज्यपाल की अनुमति के बाद जेल प्रशासन और सुधार विभाग ने रिहाई का आदेश जारी किया था। अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि की उम्र, जेल में काटी गई अवधि और अच्छे आचरण को आधार बनाकर रिहाई दिए जाने की बात आदेश में कही गई है। अमरमणि और उनकी पत्नी को हत्या के केस में उम्रकैद की सजा हुई थी। अमरमणि की उम्र 66 साल और मधुमणि की उम्र 61 साल है।
उधर, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मधुमिता शुक्ला की बहन निधि शुक्ला ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट जो करता है सही करता है, लेकिन राज्यपाल से अनुरोध है कि वे कम से कम रिहाई पर रोक लगा दें, उनके पास सारे पेपर है। निधि ने कहा कि ‘8 हफ्ते का समय बहुत होता है। अमरमणि ऐसा मास्टरमाइंड है जो 8 हफ्ते में बहुत कुछ मैनेज कर सकता है। हो सकता है कि मेरी हत्या ही कर दे और कोई पैरवी करने वाला ही नहीं बचे। सरकारी कागज बताते हैं कि 2012 से 2023 तक अमरमणि जेल ही नहीं गया। जब जेल ही नहीं गया तो सजा माफी की बात कहां से आती है। मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि यूपी में कौन सा कानून चल रहा है।‘
बताते चलें कि 9 मई 2003 को लखनऊ के निशातगंज स्थित पेपर मिल कॉलोनी में मधुमिता शुक्ला की हत्या हुई थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने पहले CID जांच का आदेश दिया था। बाद में मामला CBI को ट्रांसफर कर दिया गया। CBI ने अपनी जांच में अमरमणि त्रिपाठी, उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी, भतीजे रोहित चतुर्वेदी और गोली मारने वाले संतोष राय को दोषी माना था। चारों आरोपियों को अक्टूबर 2007 में दोषी मानते हुए उम्रकैद सुनाई गई थी।
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